Friday, October 09, 2015

अंतिम आशा




निशिकाल में शशि बिंदु सा,
शिव भाल पर बने इंदु सा;
प्रत्यूष-लाली शुभेंदु सा,
तुम चली आना प्रिये

निर्मल गंगा-धार कल्लोलिनी,
सूरत लिए मधु-मोहिनी;
प्रेम-रत रति-यामिनी,
तुम चली आना प्रिये
 
मधु-सिंचित दुत्कार सी,
अलि-कली भ्रमर पुकार सी;
मधु-मास की बहार सी,
तुम चली आना प्रिये
 
काली घटा की दामिनी,
उज्जवल प्रबुद्ध यामिनी;
आरती लिए हे! कामिनी,
तुम चली आना प्रिये
 
माध-मस्त फाग फुहार सी,
श्रावणी घटा गलेहार सी;
प्रेमोन्नमत्त पारावार सी,
तुम चली आना प्रिये

गहन निशा की चेतना,
जीवन जय की प्रेरणा;
अंतिम आत्म प्रवंचना,
तुम चली आना प्रिये
 
जीवन का अंतिम छोर तुम,
मैं बिंदु मात्र चहुँ ओर तुम;
मेरी निशा की भोर तुम,
तुम चली आना प्रिये

मृत्यु जनित श्वास डोर सा,
मातृ-ममता आँचल तोर सा;
हो अंतिम मिलान बिभोर सा,
तुम चली आना प्रिये
 
लिखित अकाट्य भाग्य हो,
तुम मेरे सौभाग्य हो;
इस मूर्ख की तुम काव्य हो,
तुम चली आना प्रिये
 
निशीथ-प्रणीत विनीत सा,
वर्तमान में तुम अतीत सा;
 चिता-अग्नि लिए पुनीत सा,
 तुम चली आना प्रिये
 
मेरी चिता जब जल रही,
बाहें चहुँ दिशा को गह रही;
आत्मा अंतिम कवित्त कह रही,
तुम चली आना प्रिये
 
तेरे नयन तले देह भष्म हो,
भले ये न रिवाज़-रस्म हो;
जीवन का अंतिम तिलिस्म हो,
तुम चली आना प्रिये
 
तेरे हाथ से चिता अग्नि जले,
देह अंतिम पड़ाव को चले;
प्रत्यूष सी वो शाम ढले,
तुम चली आना प्रिये
 
~~~ सचिन रॉय "सहर"~~~

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