Saturday, October 26, 2013

स्वावलंबन



      नेतरहाट में स्वावलंबन पर काफी जोर था।  आश्रम के सामने की सड़क गीली हो गयी तो रविवार को मोरम लाकर खुद ही बिछा दिया। बाकी  आश्रम के काम  तो हम खुद करते ही थे। हाई स्कूल की परीक्षा की तैयारी में हम लगे थे।  हमारे आश्रमाध्यक्ष  उन दिनों डॉ मिथिलेश कान्ति जी थे।  लौकी के फूलों में खुद ही परागण करते थे।  विद्यालय से आते जाते रास्ते में ही कई पुस्तकें पढ़ जाते थे।  हमें अक्सर कहते थे कि उन्होंने कई लोगों के विवाह करवाए थे

 

      हमलोगों के बाल कुछ बढ़ चले थे। वे कई बार हमें टोक चुके थे। एक बार उन्होंने कहा कि समय नहीं हो तो खुद ही काट लो। हमलोगों की कान पर  फिर भी जूँ नहीं रेंग रही थी। एक बार आँगन में मैं और ज्योति बैठे थे , पता नहीं वह कहाँ  से एक कैंची और कंघी ले आया और कहा ठीक से बैठो।  जबतक मैं कुछ सोच पता उसने मेरे बाल काटने शुरू कर दिए। पहले अटपटा लगा फिर मैंने भी कटवा ही लिए। फिर कुर्सी पर  खुद ही बैठ गया और कहा मेरे भी काटो। मैंने कहा कहीं गड़बड़ हो गया तो ? अरे अपनी ही खेती है नाई  जी से ठीक करवा लेंगे।  मैं भी शुरू हो गया और काट  ही डाले उसके बाल। 

 

      अपनी पहली रचना मुझे बड़ी अच्छी लगी। अब दूसरा मुर्गा कहाँ ? महेंद्र (६६) कुछ पूछने आया तो उसने आँगन में बाल देखे और पूछा क्या नाई  जी आश्रम आकर काटने लगे हैं? हमने कहा हाँ ! तुम बैठो तुम्हारा भी कटवा देते हैं। वह बैठ गया जब मैंने उसके बाल काटने शुरू कर दिए तो वह भागने लगा। मैंने कहा हिलो नहीं कान  कट गया तो मैं ज़िम्मेदार नहीं होऊंगा।  वह डरकर बैठ गया।  ज्योति उसका उत्साह वर्धन कर रहा था। मेरी दूसरी रचना निकल कर गयी थी। बाथरूम के पास आईने में उसने  कई बार अपने को निहारा फिर आधी नाराज़गी से कहा तुम लोगों  ने मेरा  बाल ख़राब कर दिया है। अब ज्योति की बारी थी।  बुधराम जी किचन से अन्दर आये तो बाल देखकर चौंके।  यह क्या है ? मुर्गा सामने था - सूली भी थी - हमलोगों ने चारा डाला और अपने बाल दिखाए महेंद्र (६६) को देखकर वे कुछ आश्वस्त हुए। हमलोगों ने अपना कारनामा लिखकर नोटिस बोर्ड पर  टांग दिया। हमारे कितने प्रलोभनों के बाद भी कोई तैयार नही हुआ।  और हाँ हमलोगों ने बुधराम जी को बाल  कटवाने के एवज  में पंचायत कैन्टीन से बालूशाही खिलाई।

 

      इस घटना का जिक्र मैंने अपने गाँव की यात्रा के समय अपने एक मित्र से किया। उनको विश्वास नहीं हुआ।  गाँव की तहसील वाले नाई की मशहूर दुकान थी। वहां हमलोग गए और मैंने उसे अपनी मंशा बताई। वह मुझे पिछले २० सालों से जानता  था। फिर भी उसने मुझे संशय  की निगाह से देखा। मेरे मित्र की दाद  देनी होगी  की वे तैयार हो गए। मेरा काम देखकर नाई  प्रसन्न हो गया और बोला : अरे आप तो पेट काट  देते हैं तो बाल  क्या चीज़ है। मेरे मित्र ने पूछा  बताइए बाल काटने और सर्जरी करने में क्या अंतर है?  मैंने हँसते हुए कहा मैं बालों की सर्जरी ही कर रहा हूँ।  हाँ ! सर्जरी में ज्यादा  काटने का रिस्क नहीं ले सकते और यहाँ दो चार बाल एक्स्ट्रा कट गए तो कोई फिक्र नहीं। ज्यादा क्या पूरा  साफ़ भी हो गया तो फिर जायेगा पर  आदमी के अन्दर जो गया तो गाना होगा : जो चला गया उसे भूल जा ---



कुंदन कुमार

अरुण आश्रम 1968-75