Saturday, March 29, 2014

माय के दरद (एक मगही रचना)



कातिक के महिनमा अयलो मनबा गेलो झूम,
इहे बहाने चलो सब अप्पन गाँव आइआह घूम,
गाँव में लगे हलल मेला सब तरफ खुशहाली के बात,
जहिया से गेलियो परदेश की कहियो नै कटलो एगो रात।।  

छठ मैय्या के पवन महिनमा अरघ देबे ले आइबा ने,
परदेश में बैठल बेटा तो अप्प्पन माय के ता भूल न जैय्वा ने,
पैसा से सब नै होबा है अप्पन मट्टी से जुड़े ले आइबा ने,
राह तोहर तो गैयो देख हो ओक्कर बाछी से मिले ला आइबा ने।।

फोन तो बेटा डेली करा हो लेकिन तोरा देखेला मन तरसा हो,
करेजा के तों टुकड़ा हो अब ता डेली सुक्खल अंखिया बरसा हो,
 देर नै करिहा जल्दी आइहअ तोरे से तो हम्मर सब के खाली आस हो,
एतना दूर भले रहा है तैय्यो तोहर फोटू हम्मर सब के करेजा के पास हो।।

 पढ़ लिख के तो परदेस गेला अप्पन धरती के तो नै भूलबो ने,
जब भी आइभो गाँव तो अप्पन माय बिना ता नै खैबहो ने,
देह के हड्डी टूट रहलो हैं अकेल्ले अब हम नै रह सकलियो हैं,
ई बार जे आइअहा बेटा साथ ई बूढ़ी मैय्या के तों ले चलबो ने।।

 (ई हम्मर पहिला मगही रचना हो, भूल चूक माफ़ कर दिहा सब लोग
परिमल प्रियदर्शी