वह भैंस है।
पागुर करती
है।
पता नहीं
कौन सी,
मगर,
कोई गीता
उसने सुनी है –
वक़्त के
पहले भाग्य से ज़्यादा किसी को कभी कुछ नहीं मिलता।
उसने कोई
"गीता सार" सुन लिया है।
दुनिया उसे
दुहती है,
उसके बेटे
को गाड़ी में,
बेटी को खेत
में जोतती है।
लोग उसकी
खाल उधेड़ते हैं,
बोटी-बोटी
कर खा जाते हैं।
उसने सूँघा है
कोई गीता ब्रांड क्लोरोफोर्म –
तभी वह
पागुर करती है,
स्वीकार
करती है दोहन, मरण, जीवन।
गीता की
महिमा –
वह भैंस है
और उसे यह बोध भी नहीं –
होने का या
नहीं होने का।
दूर बीन
बजती रहे,
वह सिर्फ
पागुर करती रहेगी -भैंस रहने तक।
MITRESHWER
AGNIMITRA

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