Tuesday, August 25, 2015

"संत कवि" तुलसीदास को समर्पित "नवधा"




अमोघ राम मंत्रोच्चारण दंतावली विकसित अन्तर तल
जननी-वत्सलता से वञ्चित पितृत्व प्रेम से रहे विकल ।१।
 
फिर बारी आई चुनिया की धात्री कम थी, ममता चंचल
विधना का लेख अलेख्य रहा वह छोड़ एकाकी चली निकल।२।
 
ऐसा जब होना होता है अक्सर ऐसा ही होता है
तुलसी के साथ भी ऐसा ही नियति का चलता खेल सकल ।३।
 
नारी नर की, नर नारी का, बन सका अभेद नहीं मनका
तुलसी जग से मुँह क्यों फेरें ले नारायण वाला मनका।४।
 
ऐसा कामी ऐसा रामी सुन्दर विनम्र ऐसा सर्जक
फिर हनुमान की पूँछ पकड़ मंजुल मानस मंगल गायक।५।

 हे लोकवन्द्य! ले कथा रम्य, शंकर वाचक सब सुनी उमा,
थे भारद्वाज कथा वाचक, हुई याज्ञवल्क्य की धन्य प्रमा ।६।
 
इससे बढ़कर भी बात चली, यह "शीलकथा" सुन्दर निकली,
हो गए जटायु धन्य-धन्य, सुन काकश्रेष्ठ वर वचन रम्य।७।
 
युग से युग को अवदान मिले, जनमानस को वरदान मिले,
तुलसी वन के तुलसी बनकर, हर घर आँगन में स्नेह पले।८।
 
संत कवि को है समर्पित, वंदना के गीत अविकल,
अलख का बनकर पुजारी, हो रहा मन आज निश्छल।९।
  
विन्ध्याचल पाण्डेय "मधुपर्क"