आज,
आँख
बंद किये कमरे में,
चैन की
कोशिश में, शांत मन से
भरम
में –
एक
छुपे सपने की,
कुछ
ऊँची, कुछ नीची,
कुछ आड़ी, कुछ तिरछी ही तस्वीर बनी,
कैसी
तस्वीर ...?
हाथ
में हाथ लिए कुछ युवा,
कुछ मन, कुछ मस्तिष्क
राजनीति
से राजनीति में,
सुख के
अपने सपने में –
तस्वीर
बना रहा है.
कुछ
ऊँची, कुछ नीची
कुछ आड़ी
और कुछ तिरछी भी,
पर
तस्वीर बना रहा है.
मैं
कौन?
एक सपना
–
एक
रोटी की अपनी ही तस्वीर बना रहा हूँ –
कुछ
ऊँची, कुछ नीची,
कुछ आड़ी
और कुछ तिरछी ही....
-
नितीश
राज
राजनीति और सपनों की जुगलबंदी !
ReplyDeleteaabhaar Uday kumar ji.
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