Sunday, January 04, 2015

एक ग़ज़ल


मैं तुझे दिल में बसाना चाहता हूँ
कू-ब-कू इक घर बनाना चाहता हूँ


तुम नहीं आओगे ऐसी बात होगी
अपने दिल में बस सजाना चाहता हूँ


दिल जला था चोट ही ऐसी लगी थी
आग से अब दिल जलाना चाहता हूँ


आख़िरी मौक़ा दिला दे ऐ ख़ुदारा
वा क़फ़स चिड़िया उड़ाना चाहता हूँ


ऐ ‘सपन’ डरना नहीं सैलाब से यूँ
रुख़ नदी का मोड़ देना चाहता हूँ


विश्वजीत 'सपन'