Thursday, October 30, 2014

एक कविता




राग दरबारी 

नेतरहाट निकुंज निलय हो
पुलकित कानन कुल किसलय हो,
दृषद तल्प पर शबनम सोती,
ऊषा सूनरी की नव दीप्ति,
लिए सदा अरुणाभ क्षितिज पर,
विहगवृन्द का गान सुनाती,
कर्ण कुहर उन्मीलित हो,
नेतरहाट निकुंज निलय हो

प्रतिवर्ष मुदित मंगलमय हो,  
आह्लाद -जन्य प्रतिपल मन हो,  
कांक्षित केसर कानन उर में,
आत्म -दीप ज्योति जाग्रत हो,
नूतन दृष्टि से पुलकित हो,
नेतरहाट निकुंज निलय हो 

आद्याश्री आभा से भासित,  
सारस्वत द्वीप प्रदीपित हो,  
नूतन द्वैपायन संभूत हो,
संतत मंगल अभिनन्दन हो,
अनुप्राणित उर वसु वैभव हो,
नेतरहाट निकुंज निलय हो

विंध्याचल पाण्डेय जी (सम्प्रति नेतरहाट के शिक्षक)

2 comments:

  1. शब्दों का चयन प्रभावशाली है।अति सुंदर।

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    1. सादर आभार आपका आदरणीय। ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति एवं रचना की सराहना के लिये हृदय से आभार आपका। आपके स्नेहाशिष से मन प्रसन्न हुआ। इसी प्रकार स्नेह बनाये रखें।
      सादर नम

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