चमन में फूल जब खो जाएगा
ये जहाँ फिर कहीं सो जाएगा
बाद ऐसी चली ही आएगी
ज़ख़्म सीने का भी रो जाएगा
आबरू लुट गई नज़ारों की
बेख़ता है कहाँ वो जाएगा
बेरिया ही रहा ज़माना जब
चाह रहने से क्या हो जाएगा
तुम मुनासिब कहो इसे जालिम
दिल मिरा टूट कर तो जाएगा
कैसे सह पाऊँगा ये महरूमी
वो कभी रूठ कर जो जाएगा
कोई नादान तो नहीं है ‘सपन’
आग में कूदने क्यों जाएगा
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यदि कोई मित्र इसे तरन्नुम में सुनने की इच्छा रखते हैं तो वे नीचे दिये लिंक पर सुन सकते हैं.
http://youtu.be/BWX6Xy5EXd0
विश्वजीत 'सपन'
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