Sunday, September 07, 2014

एक ग़ज़ल



चमन में फूल जब खो जाएगा
ये जहाँ फिर कहीं सो जाएगा


बाद ऐसी चली ही आएगी
ज़ख़्म सीने का भी रो जाएगा


आबरू लुट गई नज़ारों की
बेख़ता है कहाँ वो जाएगा


बेरिया ही रहा ज़माना जब
चाह रहने से क्या हो जाएगा


तुम मुनासिब कहो इसे जालिम
दिल मिरा टूट कर तो जाएगा


कैसे सह पाऊँगा ये महरूमी
वो कभी रूठ कर जो जाएगा


कोई नादान तो नहीं है ‘सपन’
आग में कूदने क्यों जाएगा

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यदि कोई मित्र इसे तरन्नुम में सुनने की इच्छा रखते हैं तो वे नीचे दिये लिंक पर सुन सकते हैं. 

http://youtu.be/BWX6Xy5EXd0 

विश्वजीत 'सपन'

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