एक अपरिपक्व अभिव्यक्ति
अचानक से मन में बड़ी व्याकुलता सी हुई
कुंठा सी महसूस हुई
सोचा, सोचा कुछ व्यक्त करूँ
मन के विचारों को
और इस जीवन में मिलते सहारों को
पर क्या कहूँ
किसके बारे में कहूँ
छवि कुछ धूमिल सी हुई परी है
शब्दों का अभाव भी हैं
कहते हैं डूबते को तिनके का सहारा काफी होता है
पर उनका क्या जो तिनके के भरोसे चलते हैं
महसूस हुआ
कहीं अपनी ज़िन्दगी ऐसी तो नहीं
सोचा
द्वन्द छिड़ा
युद्ध घमासान
अरमानों की नृशंस हत्या-
हत्यारा मैं खुद
================
प्रणय भारद्वाज
अचानक से मन में बड़ी व्याकुलता सी हुई
कुंठा सी महसूस हुई
सोचा, सोचा कुछ व्यक्त करूँ
मन के विचारों को
और इस जीवन में मिलते सहारों को
पर क्या कहूँ
किसके बारे में कहूँ
छवि कुछ धूमिल सी हुई परी है
शब्दों का अभाव भी हैं
कहते हैं डूबते को तिनके का सहारा काफी होता है
पर उनका क्या जो तिनके के भरोसे चलते हैं
महसूस हुआ
कहीं अपनी ज़िन्दगी ऐसी तो नहीं
सोचा
द्वन्द छिड़ा
युद्ध घमासान
अरमानों की नृशंस हत्या-
हत्यारा मैं खुद
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प्रणय भारद्वाज
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