Saturday, March 18, 2017

एक गीत

गीता का उपदेश यही है,
कुछ नहिं तेरा मेरा है।
माया-मोह जगत का आँचल,
जनम-मरण सब फेरा है।

फल की चिंता कभी न करना,
करम तो बस निष्काम है,
जीव-जगत मिथ्या ही जानो,
भरम ही इसका नाम है,
सूत्रधार बैठा है ऊपर,
उसने चित्र उकेरा है।

काम-क्रोध, मद, लोभ यहाँ पर,
खींचेगा ही पल-पल में,
बच न सका तो जीवन होगा,
पाप-पंक के दलदल में,
हर क्षण हर पल निकट सभी के,
मद का रहता डेरा है।

राजा हो या रंक सभी को,
मिट्टी में मिल जाना है,
अंतिम लक्ष्य न समझ सका तो,
अंत समय पछताना है,
मोक्ष धाम का साधन कर ले,
अभी समय भी तेरा है।


सपन (17.03.2017)

No comments:

Post a Comment