Saturday, June 13, 2015

सप्तपदी


 


रागिनी के नम्र सम्मान में प्रत्युत्तरित है।
गान भरती कोकिला मधुकुंज में
प्रेम के पाथेय पुलकित प्राण से
है अनागत की नवल परिकल्पना
है समर्पण भाव के किंजल्क से।१

क्या करूँ अर्पण तेरे उपचार में
यह हृदय पर वेदना का भार है
मैं अकेला हूँ नहीं इस विश्व में
है प्रतीक्षा अर्चना उपहार है।२

सृष्टि के उपहार थे तुम दिव्य थे
सृजन का श्रृंगार बनता क्यों नहीं
जो मिला प्रतिदाय में इस गोत्र को
सोचता चुकता करूँ क्या है सही।३
है प्रत्यंचित हर दिशा सौगंध से
नीलिमा नभ की हमें ललचा रही
रागिनी अब काकली क्यों बन गयी
दृष्टि में खुशबू कहाँ से आ रही।4

नय विनय विज्ञान की संभावना
दीख रही प्राची प्रतीची पार भी
दीप लेकर हर कदम रक्तिम चरण
ले समन्वय का नया संधान भी।5

क्षितिज अंचल आज भी अरूणाभ है
है उषा के पार कोई गा रहा
चीड़ फुनगी फैलती नभ वक्ष पर
धवल केतु व्योम में लहरा रहा।6

काननी की मानिनी किलकित रहे
गंधगर्भा है अनाविल उर्वरा
क्या नहीं थी कामना उर में तेरे
वर विपंची भी रहे स्वर से भरा।7

विन्ध्याचल पाण्डेय. मधुपर्क(सम्प्रति नेतरहाट के शिक्षक)

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