Sunday, March 16, 2014

हरि अनंत हरि कथा अनंता, भाग - 6



हाफ-पैंट फुल-पैंट

      नेतरहाट में इन्टर की घोषणा होने के बाद जब हमें बुलाया गया तो जिस वय: संधि काल में हम थे सब के चेहरे पर रोयें उगने लगे थे तथा काफी लोगों के पैर और हाथों पर भी इस तरह का प्रकोप हो चला था। एक बार जब मैंने कुछ दिनों से बाल नहीं कटवाया था तो खेल के दौरान स्वर्गीय श्रीमानजी रामदेव त्रिपाठी जी ने मुझसे कहा कि बाल क्यों नहीं कटवाते हो? एक दम भालू जैसे लग रहे हो। उनके इस कथन से यह तो स्पष्ट था कि यह हमारे संपूर्ण व्यक्तित्व के लिए था, हाँ उन्होंने कहा था सिर्फ बाल और दाढ़ी के सम्बन्ध में। अभी तक मैंने दाढ़ी बनानी नहीं शुरू की थी। मेरा ही नहीं सभी का मत था कि हमारे पैर के जो लम्बे-लम्बे बाल हैं उनसे हम हाफ-पैंट में अजीब से लगते हैं। हमने अपनी समस्या प्राचार्य के समक्ष रखी। प्राचार्य ने अपनी आदत के अनुसार इसे एक सिरे से नकार दिया। हमने कई तरह से इस बात को अन्य शिक्षकों के सामने भी रखी। कुछ शिक्षक इस बात से सहमत थे। कुछ नहीं।

      हायर सेकेंडरी ख़तम कर इन्टर शुरू होने से एक साल छात्रों को अधिक रहना पड़ेगा जो अभी तक नेतरहाट में नहीं हुआ था। इस बात को प्राचार्य ने शायद नहीं समझा। उन दिनों बिहार में हाई-स्कूल ग्यारहवीं कक्षा में होता था और उत्तर प्रदेश में दसवीं। लगता है ध्यान नहीं देने का एक दौर-सा था। बिहार में राजनीतिक उथल-पुथल का दौर जारी था - जे पी के आंदोलन के रूप में और जिसमें छात्रों की भागीदारी ही अधिक थी। हमलोगों ने भी विरोध प्रदर्शन की सभाएँ प्रारंभ कर दीं। दो-तीन नंबर मैदान या 7 नंबर के मैदान पर सभाएँ होने लगी। इसमें हमारे बैच के करीब-करीब सभी छात्रों का सहयोग था। उनका भी जिन्होंने अंतिम युद्ध में हमारा साथ नहीं दिया। ऐसा शायद नेतरहाट में कभी नहीं हुआ था। हम लोग प्राचार्य से मिलने गए। प्राचार्य ने हमारी बातें ध्यान से सुनी और कहा गाँधी जी अपने ६० -७० साल की उम्र में घुटनों तक की धोती पहनते थे और तुम लोग अभी ही घुटनों तक का हाफ-पैंट नहीं पहनना चाहते। 

      इस पर विनय (13) ने कहा - "हमारी उम्र में गाँधी जी भी फुल-पैंट पहनते थे, आप इसे कर दीजिये हम वादा करते हैं कि गाँधी जी वाली घुटनों तक की धोती वाली उम्र में हमलोग आपसे वही धोती पहनकर मिलने आयेंगे।"
 
      बात ज़ोरदार थी। शायद प्राचार्य को अंदर तक लगी। उनकी 'ना' में अब दम कम हो गया था। हमारी विरोध सभाएँ जारी थी। कुछ शिक्षकों का मौन समर्थन भी हमें मिल रहा था। हमारे शीतकालीन अवकाश का दौर बढ़ा दिया गया था। फुल-पैंट पहन कर इन्टर के छात्र के रूप में हम अलग दिखना चाहते थे। वही वय: संधि काल में अपने को सबसे सही मानने की ज़िद बाकी हाई-स्कूल तक के छात्रों के लिए हम हाफ-पैंट की ही सिफारिश कर रहे थे। काफी जद्दो-जहद के बाद इस बात को मान लिया गया। अब समस्या यह थी कि फुल-पैंट का रंग क्या होगा? प्राचार्य अपनी तरफ से चुनाव करना चाहते थे जिसे हम अपने हाथ में लेना चाहते थे। आख़िरकार इसकी जिम्मेवारी हमारे ऊपर दे दी गयी। अनिल ३८ ने पता किया कि किस रंग के सबसे ज्यादा शेड्स मिलते हैं। पता चला कि भूरे रंग के ३५ शेड्स उपलब्ध हैं मफतलाल में। यह थोड़ी शैतानी का मामला था। अतः हमने इसी रंग का चुनाव किया जो आज तक शायद चला आ रहा है। हमें अवकाश के दौरान सूचित किया गया कि भूरे रंग की दो फुल-पैंट (पतलून) सिलवा कर लेते आयें। जब हम लोग नेतरहाट पहुँचे तो रंग-बिरंगी पतलूनों का दौर (३५ शेड्स होने के कारण) शुरू हुआ। पर प्राचार्य ने अपना वीटो रखते हुए इसे फोर्थ ईयर से लागू कर दिया था ताकि हमारे अलग दिखने वाली बात न रह पाये। प्राचार्य के इस कदम का असर अच्छा नहीं हुआ और जो आगे चलकर कई विस्फोटक घटनाओं का सूत्रधार बना जिसमें पुलिस और बिहार सरकार के प्रशासन की मदद लेनी पड़ी।


कुंदन कुमार

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