कौने ठइयाँ झुमका हेराईल हो रामा
कौने ठइयाँ
गोरी गोरी गोरिया से लाली रे चुनरिया
लाली रे चुनरिया
लाली लाली बिंदिया से धानी रे अँचरिया
धानी रे अँचरिया
फगुआ भी गईल बौराईल हो रामा
फगुआ भी गईल बौराईल ही रामा
कौने ठइयाँ..!!
पिया निरमोहिया से बसे रे विदेशवा
बसे रे विदेशवा
नाहिं कोई चिठिया से नाहिं रे संदेशवा
नाहिं रे संदेशवा
अंगे अंगे पुरवा टाटाईल हो रामा
अंगे अंगे पुरवा टाटाईल हो रामा
कौने ठइयाँ...!!
बैरन कोयलिया से कुहू कुहू कुहुके
कुहू कुहू कुहुके
रतिया म मनवा से चिहुँ चिहुँ चिहुँके
चिहुँ चिहुँ चिहुँके
अँखियाँ में रतिया बीताईल हो रामा
अँखियाँ में रतिया बीताईल हो रामा
कौने ठइयाँ ...!!
कौने ठइयाँ झुमका हेराईल ही रामा!!"
~~~~~ सचिन रॉय "सहर" ~~~~~
इयं वसन्तपंचमी सुमं वहन्ती सर्वदा।
निनादयन्ती वल्लकीं सनातनीं मे शारदा।।
चकास्तीयं वसुन्धरा, वसन्तदूती आगता।
रसालपादपेषु मञ्जरीभि: सृष्टि: घोषिता।।
जलात् सुनिर्मलात् विवेकलक्षणा: सुवाहना:।
सुश्वेत-हंस- ज्ञान- दान- दक्ष-कार्यभारिता:।।
आबालवृद्धनारीभि: सरस्वती सुपूजिता।
भवेयु: ते निरामया: वशानुगा प्रभान्विता।।
इयम् ॠतम्भरा चिदम्बरात् समीपमागता।
श्वेतांवरा प्रियम्वदा सदा भवेत् शारदा।।
प्रत्यक्षरम् अलिभिरिव भारती विराजिता।
प्रतिगिरं सुवासयेत् अनादित: समर्चिता।।
विन्ध्याचल पाण्डेय "मधुपर्क "
नदी का किनारा,
वो अमिया की बगिया,
वो सुबह का मौसम, घड़ों का निकलना,
वो पानी में छप छप, वो आँखों का धुलना,
वो खेतों को जाते, बैलो की रुनझुन,
वो चिड़ियों की चहचह, वो लोगों का शोर,
नदी का किनारा,
वो अमिया की बगिया।
वो पेड़ों की डालों पे हमारा फुदकना,
वो दिनभर नदी में, मछलियाँ पकड़ना,
वो लड़कपन का खेलना, वो मेढ़ों पे दौड़ना,
वो दोस्तों का झगड़ना, वो रूठना मनाना,
नदी का किनारा,
वो अमिया कि बगिया।
शाम ढले चाँद का पेड़ों पे उगना,
तारों सितारों का झिलमिल चमकना,
नदी की कोलाहल में संगीत का मिलना,
बहुत याद आता है बचपन हमारा,
वो नदी का किनारा,
वो अमिया की बगिया।
शील रंजन