राग दरबारी
नेतरहाट
निकुंज निलय हो।
पुलकित कानन
कुल किसलय हो,
दृषद तल्प
पर शबनम सोती,
ऊषा सूनरी
की नव दीप्ति,
लिए सदा
अरुणाभ क्षितिज पर,
विहगवृन्द
का गान सुनाती,
कर्ण कुहर
उन्मीलित हो,
नेतरहाट
निकुंज निलय हो।
प्रतिवर्ष
मुदित मंगलमय हो,
आह्लाद
-जन्य प्रतिपल मन हो,
कांक्षित
केसर कानन उर में,
आत्म -दीप ज्योति जाग्रत हो,
नूतन दृष्टि से पुलकित हो,
नेतरहाट निकुंज निलय हो।
आत्म -दीप ज्योति जाग्रत हो,
नूतन दृष्टि से पुलकित हो,
नेतरहाट निकुंज निलय हो।
आद्याश्री
आभा से भासित,
सारस्वत
द्वीप प्रदीपित हो,
नूतन
द्वैपायन संभूत हो,
संतत मंगल अभिनन्दन हो,
अनुप्राणित उर वसु वैभव हो,
नेतरहाट निकुंज निलय हो।
संतत मंगल अभिनन्दन हो,
अनुप्राणित उर वसु वैभव हो,
नेतरहाट निकुंज निलय हो।
विंध्याचल
पाण्डेय जी (सम्प्रति नेतरहाट के शिक्षक)