Monday, November 09, 2015

धनत्रयोदशी सदा भवेत् सुमंगल


                                                             स्वरचित सुमंगली 


धनत्रयोदशी सदा भवेत् सुमंगली। 
यशस्करी आयुष्करी भवेत् विवर्धनी।।१।। 

समुद्रगर्भनि:सृतं आरोग्यदायकं। 
धन्वंतरिं समर्च्य तु प्रमोदमानसै:।।२।।

श्रियमुमासुतं गृहे आनीय पूजयेत्। 
प्रलब्धद्रव्यपूजनै: विधिं समाचरेत्।।३।। 

उपचारपञ्चकै:भवेत् तु वास्तु षोडशै:।
पञ्चगव्यप्राशनं कुरुष्व मार्जनं तत:।।४।। 

प्रज्वाल्य दीपकं चतु्र्मुखं सुवर्त्तिनम्। 
नैवेद्य -नैष्ठिकं निवेद्य प्राञ्जलिर्भवेत् ।।५।। 

कर्पूरद्रव्यभावनै: सघण्टनि:स्वनै:। 
आरार्तिकं विधेहि सह बन्धुबान्धवै:।।६।। 

तत:परं सुपुष्पसाक्षतैर्भवेत् नत:। 
समर्पयेत् सदा भवेत् सुमंगलं वदेत् ।।७।। 

धन्वन्तरये नमोनम: धन्वन्तरये नमोनम:। 
धन्वन्तरये नमोनम: धन्वन्तरये नमोनम:।।८। 

धन्वन्तरये नमोनम: वदेत् प्रेम्णा मुदा तदा। 
प्रसन्नो वरदो सुखदो भवतु हे धन्वन्तरि देव ।।९।। 

विन्ध्याचल पाण्डेय "मधुपर्क"

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