Saturday, November 07, 2015

कोई करता है सवाल, मुझसे


कोई करता है सवाल, मुझसे - 
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आज़ादी के बुनियादी हक़ के तुम तरफदार , 
पैरोकार तुम इन्साफ के, 
अक्सर बोलते - लिखते हो आदमी के हक़ में - 
तुम्हारे होठ - कागज़ - कलम, 
सिद्धांतों की वकालत करते 
अक्सर लांघते हदें - बन्धु , 
यह सब कब घुलेगा तुम्हारे रक्त में 
तुम्हारी कथनी कब बनेगी तुम्हारा स्वभाव ? 
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तुम एकनिष्ठ व्रतचारी , मीमांसक , तत्वचेता 
तुम्हारे सामने उफान पर धार्मिक उन्माद बन्धु , 
तुम्हारा सर्व शक्तिमान तुम्हारी विनती पर रीझ 
क्यों नहीं करता ध्वंस्त 
जन विरोधी प्रपंची - विभेदकारी तंत्र - 
तुम्हारी सक्रिय सहभागिता पाकर - 
अपने आराध्य की नीयत में तुम देखते हो , कोई खोट ?
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तुम मनुष्य , धर्म तुम्हारा मनुष्यता , 
फिर क्यों मामूली उकसावे पर , उभर आते हैं , 
तुम्हारी हरकतों में 
लोमड़ी - कुत्ते - सियार - बन्धु, 
जब - तब , घर - बाहर, 
हर - कहीं तुमसे क्यों अक्सर छूट जाती है इंसानियत ? 
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काटने-मारने -दबोचने -चबाने -चूसने - में 
तुम पाते हो आनंद 
समता-ममता, करुणा-न्याय, समन्वय-समंजन 
स्वभाव नहीं बना तुम्हारा 
अपकर्मों के प्रति आकर्षण, आनंद तुम्हारे कुत्सित 
बन्धु , सोचो ना , कितना मुश्किल है मेरे लिए 
तुम्हारा नाम दर्ज करना इंसानों की सूची में ? 
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सिनेमा हॉल से निकल, तुम भूलते हो नायक के डायलाग 
मुखस्थ रहते हैं खलनायक के कथन, उसकी अदाएँ 
तुम्हारे वजूद में विद्यमान पशुता, 
आवरण में छिपी कुटिलता सहित तुम्हें 
बन्धु , मैं मान नहीं पाता मनुष्य ?
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***** मित्रेश्वर अग्निमित्र

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