मैं तुम्हारा हित चाहने वाला!
मिला करता हूँ तुमसे हर रोज़ इस वक्त
इन अखबारों में.
कह नहीं सकता तुमसे कुछ वर्ना
किसी कवि की ये पंक्तियाँ निरर्थक हो जाती...
कि "प्यार किया तो कहकर उसे बताना क्या"
और वैसे हमारे जन्मभूमि" बिहार" में तुम तो
साक्षात विचरण कर रही हो.
फ़ील गुड हो रहा है ना
ऋषियों-मनीषियों, राजा-महाराजाओं
की पाकीजा धरती पर.
पर मैं बताता हूँ..
हूँ तो अभी बच्चा ही,
इसलिए तुनक जाता हूँ सुनकर
कि 'बिहार ' की राजनीति बहुत गंदी है..
तुम कुंठित न होना ये सुन-सुन कर..
तुम्हारी "मर्यादा" हमारे कुछ
"पुरूषोत्तमों"
ने छलनी कर दी है..
तुम्हारी व्यवस्था का
'चीर-हरण' हो रह था धीरे - धीरे,
हो रहा है अभी थोड़ा तेज..
और होता ही रहेगा और भी द्रुत गति से...
यह मैं नहीं, आज के "दु:शासनों" की
लपलपाती लम्बी-सी जिह्वा कह रही है..
रामायण, महाभारत की घटनाएं
धर्म व कर्म की नीति पर केंद्रित थीं.
और आज हमने तुम्हें भी वहाँ तक
पहुँचा दिया है धक्का दे-देकर.
उपरोक्त घटनाओं के
नायक-खलनायक
श्रीराम व कृष्ण थे..
बस! अब ये देखना है कि इन "पुरूषोत्तमों" से
तुम्हरी लाज बचाने
"कल्कि" कब और कितनी जल्दी आता है.....????
तुम्हारा!
***** दीपक 'नेतरहाटवाला'
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