Saturday, May 21, 2016

पारुल (एक कहानी)


मोटर साइकिल तेज़ी से बगल से निकला। पारुल लगभग टकराते टकराते बची। सड़क पर इतनी भीड़ थी कि किसी ने ध्यान भी नहीं दिया कि एक तीन साल की बच्ची अकेले इस तरह चली जा रही है। मैं सड़क के दूसरी तरफ था। मैंने दुकानदार से कहा कि यह तो वही बच्ची है न जिसके पिताजी एक साल पहले गुजर गए थे। उसने मेरी तरफ गौर से देखा 

मुझे उसके पिताजी से कुछ वर्षों पहले हुई बातचीत याद आ गयी। उस दिन उन्होंने पूरे मोहल्ले में मिठाई बँटवाई थी। उन्होंने मुझे कहा था कि उनके घर में लक्ष्मी आई थी। देखना मेरी बेटी बड़ी होकर कितना नाम कमायेगी। वो बोले, अब ज़माना बदल रहा है, मेरी बेटी सौ बेटों के बराबर होगी। फिर मुझे पता चला कि उसके कुछ दिनों के बाद पारुल के पिताजी एक सड़क दुर्घटना के शिकार हो गए। पारुल तब ढाई साल की रही होगी। मैंने देखा था पारुल कैसे अर्थी पर लेटे अपने पिताजी को उठा रही थी। अपनी तोतली आवाज़ में कह रही थी, "पापा उठ, तलो घूमी करने।" पर निष्प्राण शरीर कहीं भला उठ पाता है! उस दिन पारुल गेट से दूर तक पिताजी को श्मशान के तरफ ले जाते हुए लोगों को देखती रही। शाम को सब घर आये पर पारुल के पापा नहीं आये, बार-बार पारुल माँ को कहती – "मामा, पापा कब आयेंगे?" पापा की चप्पल को लेकर पारुल गेट के तरफ जाती और गेट की जाली से देखती कि पापा आयेंगे, तो चप्पल पहना कर सोफे पर उनके साथ बैठूँगी। यह पारुल का पहले रोज का रूटीन था कि पापा के आते ही गेट तक पारुल एक चप्पल लेकर दौड़ कर जाती थी और फिर पापा की गोद में बैठकर सोफे पर पापा के साथ थोड़ी देर खेलती थी। बहुत देर तक जब पापा नहीं आये तो पारुल चप्पल को सीने से लगाये सोफे पर बैठ गयी। और पापा-पापा कहते कहते वहीं सो गयी। मुझे याद है रिश्तेदारों में से कोई पारुल के यहाँ झाँकने तक भी नहीं आया। जब तक पारुल के पापा जिन्दा थे, तो पैसे ऐंठने के लिए रिश्तेदार आते रहते थे। वो थे भी सरल हृदय और उनसे जो बन पड़ता, सबकी सहायता किया करते थे। पर अब, जब वो इस दुनिया में नहीं हैं, तो कौन अपना भाड़ा लगाकर इतनी दूर से मिलने आते। दिन, सप्ताह और महीने बीत गए और शायद पारुल तीन साल की हो गयी थी। 

एक दिन शाम को मैंने देखा कि पारुल रो-रो कर जोर-जोर से बोल रही है- "मामा, मत जाओ, हमको भी साथ ले लो मामा।" पारुल माँ के पैरों में लटक गयी थी, और पैरों से घिसटते हुए वह बहुत दूर घर से सड़क तक आ गयी थी। घसीटने के कारण पारुल का हाथ-पैर छिल गया था। उसकी माँ बिना कुछ बोले ही कार में बैठ गयी। कार में पहले से एक युवक बैठा हुआ था। कार धूल और धुँएं का गुबार पीछे छोड़ता हुआ आगे बढ़ गया। पारुल रोड पर अकेली सूनी सड़क पर टायरों के द्वारा छोड़ी गयी लकीर को देखती और रोती हुई वहीं लेट गयी। बाद में पता चला कि पारुल की माँ दूसरी शादी करके पारुल को छोड़कर चली गयी है। 

घर में सिर्फ दादा, दादी और पारुल रह गये। एक समय पारुल के लिए सुबह-शाम खिलौनों और मिठाइयों की घर में कमी नहीं रहती थी। अब पारुल अपने ही घर में ही बेगानी हो गयी। दादा-दादी अधिक उम्र के कारण कोई भी काम करने में अक्षम थे। बेटे ने जो कमा कर रखा था, उसी से घर का खर्चा किसी तरह चलाने की कोशिश की, पर घर बस चलता ही था। जब जवान बेटा चला जाए और बहु बेटे के ऊपर जाते ही मुँह फेर ले, तो जीवन से और कोई उम्मीद भी नहीं की जा सकती है। उस दिन के बाद आज मैं पारुल को देख रहा था। कभी फैंसी फ्रॉक से ढकी रहने वाली पारुल आज सिर्फ एक छोटी सी फटी हुई पैंट और एक गन्दी सी बनियान में दिख रही थी। और वो भी इस भीड़-भाड़ वाली सड़क पर अकेले। मैंने सोचा कि उस पार जाकर पारुल को गोद में उठाकर कुछ बिस्किट और चोकलेट दे दूँ। दो तीन रिक्शेवाले मेरे सामने आ गए, मैं उनसे बचकर उस पार जाने लगा, पर ज्यादा भीड़ के कारण मुझे आगे बढ़ने में दिक्कत हो रही थी। इसी बीच एक काली कार तेज़ी से उल्टी दिशा से सड़क पर आ रही थी। मैंने रिक्शेवाले को तेज़ी से हटने का इशारा किया, पर मेरे कानों में तेज़ी से कार के ब्रेक लगने की आवाज़ आयी। मैं पारुल के तरफ देखा तो सहम गया। पारुल कार के धक्के से हवा में उछल गयी थी। उसके बाल हवा में पूरी तरह बिखर गये थे और रक्त की बूँदें उसकी नाक और उसके कानों से रिस-रिसकर बाहर आने लगा था। मुझे यह दृश्य देखकर सदमे से बेहोशी सी महसूस होने लगा और धीरे धीरे मैं भी ज़मीन पर गिरने लगा। गिरते-गिरते मैं देख रहा था कि पारुल हवा में दोनों हाथ ऐसे फैला कर गिर रही थी कि मानो उसके पापा अदृश्य रूप से उसके सामने खड़े हों और वो उनसे मिलने के लिए राजहंस की तरह तैरती हुई जा रही हो। मैं ज़मीन पर धम से गिरा और मेरी आँखें धीरे-धीरे बंद होने लगी। बंद आँखों से मैंने देखा कि पारुल ज़मीन पर खून से सनी हुई अधखुली आँखों से मेरी तरफ देख रही थी। दूर आसमान में एक सफ़ेद पंछी डूबते सूर्य की आभा को चीरते हुए आसमान की ऊँचाइयों में विलीन हो रहा था और नीचे ज़मीन पर बाज़ार में मुझे दूर से आती हुई मध्यम संगीत सुनाई दे रही थी –गुड़िया रानी परियों की दुनिया से एक दिन राजकुँवर जी आयेंगे .............!! 

***** उदय कुमार

2 comments:

  1. किसी के होने ना होने का अन्तर बताती इक अच्छी कहानी।

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    1. सादर आभार आपका आदरणीय.

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