हुआ गजब संयोग एक दिन,
जब मैं भटक रहा था अस्पताल में,
लगा कल तक धरती पर था,
आज आ गया कहाँ पाताल में?
खैर, सिर्फ अपनी बात नहीं थी,
सब भटक रहे थे उसी हाल में,
भागते दौड़ते खोज रहे थे कुछ,
कुछ धीमी, कुछ तेज चाल में।
तभी हुआ सौभाग्य उदित,
मन हुआ स्वयमेव मुदित,
धवल वस्त्र में धीर चाल में,
प्रकट देवी हुईं उसी काल में।
वो रखती अपने पग जिधर,
रास्ता तुरंत बन जाता उधर,
कोमल काय, कंधे पर आला,
मुख बंद जैसे लगा हो ताला।
सोचा उस डिपार्टमेंट का एड्रेस,
बता देंगी ये विदाउट स्ट्रेस,
इनको अवश्य होगा ज्ञान,
चेहरा इनका देदीप्यमान।
"सिस्टर, कहाँ साइटोलोजी...?"
कहा मैंने विनम्रमुख,
"सिस्टर"...सुनते ही बदल गया,
मैडम के चेहरे का रुख।
चेहरे पर ही उतर आया उनके,
पूरे शरीर का हीमोग्लोबिन,
मैं बस अवाक् खड़ा देखता
रह गया उनकी ओर दीन।
रक्तमुखा की आँखे जल उठी,
जैसे ओपरेशन थेटर की लाइट,
मुझे समझ ना आया कुछ भी
क्यों हो रही मैडम टाइट ??
"डॉक्टर को सिस्टर कहते हो,
पढ़े-लिखे हो या गँवार हो ??"
गरजी मोहतरमा मुझपर, जैसे
टेस्ट टयूब पर लाठी प्रहार हो।
फिर दिया अंग्रेजी में सन्देश,
पढ़ आई थी शायद विदेश;
मैंने "सॉरी" कह राह पकड़ ली,
आगे मेरी जीभ जकड़ गयी।
और कुछ सीखा न सीखा,
एक बात सीख गए हम, मिस्टर!
कि लेडी डॉक्टर कभी किसी की
हो ही नहीं सकती है सिस्टर।
खैर, सिर्फ अपनी बात नहीं थी,
सब भटक रहे थे उसी हाल में,
भागते दौड़ते खोज रहे थे कुछ,
कुछ धीमी, कुछ तेज चाल में।
तभी हुआ सौभाग्य उदित,
मन हुआ स्वयमेव मुदित,
धवल वस्त्र में धीर चाल में,
प्रकट देवी हुईं उसी काल में।
वो रखती अपने पग जिधर,
रास्ता तुरंत बन जाता उधर,
कोमल काय, कंधे पर आला,
मुख बंद जैसे लगा हो ताला।
सोचा उस डिपार्टमेंट का एड्रेस,
बता देंगी ये विदाउट स्ट्रेस,
इनको अवश्य होगा ज्ञान,
चेहरा इनका देदीप्यमान।
"सिस्टर, कहाँ साइटोलोजी...?"
कहा मैंने विनम्रमुख,
"सिस्टर"...सुनते ही बदल गया,
मैडम के चेहरे का रुख।
चेहरे पर ही उतर आया उनके,
पूरे शरीर का हीमोग्लोबिन,
मैं बस अवाक् खड़ा देखता
रह गया उनकी ओर दीन।
रक्तमुखा की आँखे जल उठी,
जैसे ओपरेशन थेटर की लाइट,
मुझे समझ ना आया कुछ भी
क्यों हो रही मैडम टाइट ??
"डॉक्टर को सिस्टर कहते हो,
पढ़े-लिखे हो या गँवार हो ??"
गरजी मोहतरमा मुझपर, जैसे
टेस्ट टयूब पर लाठी प्रहार हो।
फिर दिया अंग्रेजी में सन्देश,
पढ़ आई थी शायद विदेश;
मैंने "सॉरी" कह राह पकड़ ली,
आगे मेरी जीभ जकड़ गयी।
और कुछ सीखा न सीखा,
एक बात सीख गए हम, मिस्टर!
कि लेडी डॉक्टर कभी किसी की
हो ही नहीं सकती है सिस्टर।
आशीष चन्दन,
वर्ष - 1998- 2002 ;
क्रमांक - 68;
आश्रम - आनंद.
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