Thursday, April 28, 2016

नेतरहाट की चैती (बाँस वन)


बाँसवन में बाँसुरी बजने लगी 
बात चैता ने जाने क्या कही
 
बीतता फागुन कहे कुछ कान में 
राग बासंती अभी भी मान में

कनुप्रिया को घेरता कान्हा अवश 
 बाँसुरी करती रही मनुहार बस

फाग का ढप आज साधे मौन है 
और सुर मादल कहे वह कौन है
 
तभी कुछ मादक हवा ऐसी बही 
बात चैता ने न जाने क्या कही

चीड वनका चीर हर कान्हापवन 
साल रक्खे लाज कर कुछ-कुछ जतन
 
प्रीत की जो आग फागुन में लगी 
बाँस वन में चैत में ऐसी पगी

 हो गयी रसलीन है अब रसप्रिया 
पूछती फिरती कहो यह क्या हुआ ? 

आम की डाली तभी बौरा गयी 
 बात चैता ने अभी ऐसी कही

 बाँस वन में बाँसुरी बजने लगी 
बात चैता ने न जाने क्या कही
 
प्रेमानन्द दास (२५८ / १९६५-७१ )

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