चिंटू!
कार्तिक के इस अमावस में
अबकी तुम पटाखे मत फोड़ना।
वैसे तुम्हारे पटाखे न फोड़ने से
मेरा कोई व्यक्तिगत फायदा नहीं,
बस तुमसे कहना था कि
कितने ही पेट जलते हैं,
इन पटाखों के जलने से पहले।
इनके साथ जलती उनके अरमानों की दीवाली भी.
कइयों के चूल्हे तक नहीं पहुँच पाती ये चिंगारी,
जो तुम्हारे डब्बे में करीने से सजी होंगी।
कइयों की देहरी पर जलता है केवल समय, चुपचाप!
उनकी नियति को ठेंगा दिखाता.
तुम अबकी दीवाली इनके साथ ही मनाना,
नहीं तो एक बार फिर दफ़न होगी उनकी यह दीवाली,
तुम्हें टुकुर-टुकुर देखती उन फटी आँखों में।
जलाना उनकी उम्मीदों-आशाओं के दिये,
उनकी देहरी व मेहराबों पर।
उम्मीद है कि मुझसे ज्यादा तुम ख़ुश होओगे,
और यह अनुभव पटाखों के जलने से ज्यादा सुकून भी देगा...
*** दीपक नेतरहाटवाला
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