"इंटरमीडिएट की परीक्षा"
================
================
नेतरहाट इंटर
परीक्षा में मेरे बैच का सेण्टर राँची हो गया था। यहाँ सारा इंतज़ाम हमें खुद करना था। मुझे
कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैंने अपने आश्रम के अनुज मिथिलेश प्रताप से सहायता माँगी। उसके
जीजाजी राँची में रहते थे। उन्होंने मुझे अपने साथ ही
रहने के लिए बुला लिया। मैं और पन्नग उनके घर गए जो राँची एअरपोर्ट के पास था। पन्नग मुझे
छोड़ कर चला आया। मैं वहीं तैयारी करने लगा। बिजली अक्सर कट जाती थी अतः मैं बाहर एक मेज पर लालटेन
जला कर पढ़ा करता था। हमारे आश्रम के अनुज दिव्या प्रकाश बथवाल के यहाँ मोमबत्तियाँ बना करती थी। मेरी परिस्थिति को समझते हुए उन लोगों ने मुझे बहुत सारी मोमबत्तियाँ दी
थी।
हमारा सेण्टर सेंट
जेवियर्स था। लिखित परीक्षा शुरू होने वाली थी। एक दिन मैं रात को बाहर पढ़ रहा
था। अचानक ५-७ नकाबपोश लुटेरे आ गए। मेरा हाथ बाँध कर भीतर ले आये। मुँह पर कपड़ा
बाँध दिया था और अंदर जीजाजी और दीदी को बाँध दिया। टेबल घड़ी और मेरी कलाई घड़ी जो
पिताजी की थी उन्हें छीन कर ले गए। जीजाजी के पास से नगदी भी ले गए। उनके जाने
के बाद मैंने किसी तरह से स्वयं को छुड़ाया। फिर सबको। सभी लोग सकते में थे। पिताजी की घड़ी जाने का मुझे बहुत दुःख था।
इस घड़ी के बाद मेरे पास कलाई घड़ी तब आयी जब मेडिकल कॉलेज में मुझे नेशनल स्कोलरशिप
का रुपया मिला। अगले दिन मुझे सेण्टर देखने जाना था। मेरा मन उचट चुका था। पढ़ने
में मन नहीं लग रहा था। लग रहा था इस बार परीक्षा नहीं दे पाउँगा। सेंट जेवीयर्स
में पन्नग मिला, उसने सारी बातें सुनीं और मेरे साथ जीजाजी
के घर तक आया और उनसे प्रार्थना की- आपलोग थ्योरी परीक्षा तक यहीं रहिये उसके बाद
कोई घर ढूँढिये। उसने मुझे काफी ढाढस दिया और शाम तक मेरे साथ ही पढता रहा। उसके दिलासे से मैं
कुछ संभला। जीजाजी दूसरा घर खोज रहे थे। इन्ही परिस्थितियों में मैंने लिखित परीक्षा दी। लिखित परीक्षा
के बीच में गैप हुआ करता था। मैं और पन्नग करीब करीब प्रत्येक पेपर के
बाद फ़िल्म देखने जाते थे। इससे मुझे चोरी कि घटना को भूलने में मदद मिली।
आपस में सभी बैच मेट्स के साथ बातें करने का उतना मौका नहीं मिलता था,
क्योंकि सब अलग - अलग जगहों पर रहते थे।
लिखित और
प्रायोगिक परीक्षा के बीच में कुछ वक़्त था। प्रायोगिक परीक्षा का अभ्यास कहाँ हो?
यह एक महति प्रश्न था। मैंने अपने मामाजी से बात की
जो मुंगेर में एम्प्लॉयमेंट एक्सचेंज ऑफिसर थे। उन्होंने हमलोगों के प्रैक्टिकल के अभ्यास का प्रबंध
कर दिया। मैं, पन्नग और
राणा प्रताप सिंह मुंगेर अपने मामाजी के पास गए। मेरा ममेरा भाई भी हमलोगों के साथ ही लग लिया।
सभी लोग मामाजी के पास ही रुके। उपकरण पुराने थे पर उन्होंने हमें एक नया जीवन दिया। बॉटनी के
हर्बेरियम बनाने कि बात आयी तब मैंने अपनी मौसेरी बहन से बात की, जिसने एक साल पहले इण्टर की परीक्षा दी थी। उसका हर्बेरियम
पड़ा था। जाँचा-परखा हुआ। उसमें काट-छाँटकर मैंने उसे अपने लिए बना लिया। मैंने एक अजगर का बच्चा पकड़ (पकड़ा
मैंने नहीं था, परिस्थिवश मैं वहाँ नेतरहाट में था, उसका फायदा उठा कर मैंने उसे मृत रूप में हासिल कर लिया था) कर
फोर्मलिन जार सहित नेतरहाट में रखा था। मैंने मिथिलेश को उसे
लाने को बोल
दिया। मुंगेर प्रवास में हम मामाजी की कृपा से फ़िल्में भी देख लेते थे। एक तरह
से मस्ती भरे दिन थे। साथ साथ पढ़ाई भी होती थी। मामाजी चोरी की घटना जान चुके थे अतः उन्होंने अपने एक
डॉक्टर मित्र के पास राँची में रहने की व्यवस्था कर दी।
प्रैक्टिकल तक
मैं संभल चुका था। पर प्रैक्टिकल में फिर भी दिक्कतें आईं। कॉकरोच का नर्वस सिस्टम
निकालना था। ब्रश के एक स्ट्रोक से कॉकरोच ही बिखर गया। मैं घबरा गया। पर
नेतरहाट के जूलॉजी के सहायक के भाई वहीं थे - उन्होंने
मेरी मदद की और छाँट कर एक हृष्ट-पुष्ट कॉकरोच दिया। केमिस्ट्री में मेरी मास्टरी थी। (हाई स्कूल
में केमिस्ट्री में मैंने बिहार में नया रिकॉर्ड बनाया था) साथ में नरेंद्र प्रसाद जी
भी थे। मेरा काम शीघ्र समाप्त हो गया था। उनके कहने पर मैंने उनकी उपस्थिति में अपने बैच मेट्स की सहायता
की। फिजिक्स में हमें जीर्ण-शीर्ण उपकरण मिले थे - हमलोगों को नेतरहाट के उपकरण याद कर आँखों
में आँसू आ गये थे। किसी तरह प्रैक्टिकल परीक्षा ख़तम हुई और हमने चैन की साँस
ली।
कुंदन कुमार
अरुण आश्रम 1968-75
No comments:
Post a Comment