भूकम्प का हल्का सा झटका न सह सकी
और गयी ये जमी पर एक दम से भरभरा
तूने या
मैंने -किसने इसे बनाया था
क्या हमने कुछ सोचा था कभी
अनजाने ही इस गुलशन को सजाया था
क्या हमने कुछ सोचा था कभी
अनजाने ही इस गुलशन को सजाया था
जब पहली बार मिले थे
हम
अनायास ही बज उठे थे वीणा के तार
तब सुनी थी हमने
अंतरतम की मधुर झंकार
अनायास ही बज उठे थे वीणा के तार
तब सुनी थी हमने
अंतरतम की मधुर झंकार
और
हर पल ये धरहरा बनने लगी थी
अपने आप ये आकाश में तनने लगी थी
अपने आप ये आकाश में तनने लगी थी
फिर आया वो भूकम्प का
झटका
खड़ी रही बाकी सब मंजिलें वैसी ही
लेकिन धरहरा को उसने भूमि पर पटका
खड़ी रही बाकी सब मंजिलें वैसी ही
लेकिन धरहरा को उसने भूमि पर पटका
नेस्तनाबूद हो
हो चुकी है इमारत
नहीं बचा है अब कोई निशान
ख़त्म हो चुकी हमेशा के लिए
हमारे होठों की वो मुस्कान
नहीं बचा है अब कोई निशान
ख़त्म हो चुकी हमेशा के लिए
हमारे होठों की वो मुस्कान
टूट चुकी है ये नीव से
बना न सकता इसे दुबारा
कहाँ से लाऊँ वो जज़्बा
मैंने तो अपना सब कुछ हारा
बना न सकता इसे दुबारा
कहाँ से लाऊँ वो जज़्बा
मैंने तो अपना सब कुछ हारा
अगले जन्म में मिलेंगे शायद
और हम इसे फिर बनायेंगे
पर सीख लेंगे हम इतिहास से
वो गलतियाँ कभी ना दोहरायेंगे
और हम इसे फिर बनायेंगे
पर सीख लेंगे हम इतिहास से
वो गलतियाँ कभी ना दोहरायेंगे
अपेक्षाओं (expectations) के तल्ले अपनी इस
धरहरा पर
हमने ताबड़तोड़ लगाया था
अनजाने ही इसे हमने सभी सीमाओं के ऊपर उठाया था
हमने ताबड़तोड़ लगाया था
अनजाने ही इसे हमने सभी सीमाओं के ऊपर उठाया था
अगली बार प्रिय - अपेक्षाओं
(expectations) को न पास बुलाना
जितनी ज्यादा होंगी ये
उतनी मुश्किल होगी रिश्तों को निभाना
जितनी ज्यादा होंगी ये
उतनी मुश्किल होगी रिश्तों को निभाना
*** आलोक सिन्हा
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