नेतरहाट से
विदाई
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सन 1971 तक यह पता चल गया था कि अगले साल हायर सेकेंडरी का अंतिम बैच होगा यानी अगले साल दो बैच एक साथ निकलेंगे। हम समय से पहले सीनियर
मोस्ट हो गये। एक साल के नुकसान को 1973 के प्रारम्भ तक इंटर तक की
पढ़ाई कर पूरा करने का निर्णय लिया
गया। यानी तीन साल तक सीनियर
मोस्ट। पहले बैच के अलावा यह मज़ा सिर्फ हमने
लिया। थोड़ी उच्छृंखलता हममें आने लगी थी। सीनियर और जूनियर के आश्रम अलग नहीं हुए जिससे विक्रम
आश्रम कांड हुआ (वह कथा फिर कभी) । आई.ए.एस. पाटणकर की अगुआई में बनी जाँच कमिटी
ने इन्टर के फाइनल एग्जाम का हमारा सेण्टर
रांची कर दिया था। इससे हमें काफी दिक्कतें हुई? (वह कथा फिर कभी) आनन-फानन
में हमें रांची जाना पड़ा। परीक्षा के बाद सितम्बर में मैं नेतरहाट गया क्योंकि मेरा सारा
सामान तो वहीं था।
मैं अरुण आश्रम में ही रुक गया। आश्रमध्यक्ष मुझसे बड़े
प्यार से मिले पर उन्होंने इसकी
शिकायत प्राचार्य से कर दी। इसको सुनकर श्रीमानजी
नरेंद्र
प्रसाद जी ने मुझसे कहा तुम मेरे घर में रुक जाओ पर मेरे अन्तेवासी यह नहीं चाहते थे। उसी दिन मैं सम्मलेन गया
वहाँ प्राचIर्य ने मेरा स्वागत किया, मुझे अजीब लग रहा था। उसी दिन इन्टर का
परीक्षाफल घोषित हुआ और क्लास
में
मेरा नंबर दसवां आया था। पाटणकर ने कुछ शिक्षकों का भी तबादला कर दिया था जिसमें स्वर्गीय श्रीमानजी सहदेव प्रसाद सिंह देव जी
पूर्णिया ज़िले के श्रीनगर नIमक स्थान पर जा चुके थे। मैं माताजी से मिलने पाँच
नंबर बंगलो पहुँचा। माताजी बहुत प्रसन्न हुई। उन्होंने सामने बैठाकर
मुझे खिलाया। मैंने पूछा आप कब जाएँगी? मुन्ना (स्वर्गीय बालेन्दु शेखर देव) उनका बड़ा पुत्र वहीं पढ़ रहा था। उन्होंने मुझ से पूछा
क्या
करूँ? मैंने कहा कि मुन्ना तो आश्रम में रहेगा आप चलिये। डॉ. मुनका नेतरहाट में
डॉक्टर पोस्टेड थे और देव जी के मित्र थे। उनसे सलाह और सहायता ली गयी। एक ट्रक का इंतज़ाम किया गया। अगले दिन घर का सारा सामान ट्रक में भरा गया। मैंने अपने अंत:वासियों
से अश्रुपूरित विदाई ली रात में मैं पाँच नंबर बंगलो में ही सोया। सुबह-सुबह माताजी पप्पू
(विधु शेखर देव) और गुड्डी
(अर्चना देव) के साथ मैं ट्रक में बैठा, शायद मुन्ना भी था। डॉक्टर मुनका हमें छोड़ने आये थे। माता जी और गुड्डी ट्रक
में बैठे थे और हम तिरपाल के नीचे।
एक अद्भुत यात्रा प्रारम्भ
हुई जिसमें बिहार के एक कोने से दूसरे कोने
तक जाना था। नज़ारों का मज़ा लेते हम रात में
तिलैया
पहुँचे। वहीं ढाबे पर रात्रि भोजन हुआ। माताजी के विशेष आग्रह
पर खीर
का भी हम लोगों ने आनन्द लिया। तकरीबन दोपहर तक हम श्रीनगर पहुँचे वहाँ
श्रीमानजी विद्यालय को एक नया रूप देने में व्यस्त थे। उन्होंने मुझे विद्यालय दिखाया। स्थानीय लोगों ने मुझे
उनका बड़ा लड़का मान लिया था। मेरी बड़ी खातिरदारी हुई। सच्चाई जानने के बाद भी जब श्रीमानजी ने कहा कि
यह मेरा बड़ा लड़का ही है तो मेरी आँखों
में आँसू आ गए। उनकी और मेरी ये दोनों तस्वीरें श्रीनगर में ही खींची गयी हैं। मेरी तस्वीर श्रीमानजी ने
खींची है। गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरः ---
कुंदन कुमार
अरुण आश्रम 1968-75
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